भारत में आय असमानता पर वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब के प्रकाशित अध्यनन में फ्रांसीसी अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी भी शामिल।
वर्ल्ड इक्वलिटी लैब ने मंगलवार को प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि भारत की टॉप १ % आबादी दक्षिण अफ्रीका ,सयुक्त राज्य अमेरिका और ब्राज़ील की तुलना में देश की कुल आय का अधिकतम हिस्सा रखती है। रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत में टॉप स्तर की असमानता में बढ़ोतरी विशेष रूप से २०१४-१५ और २०२२-२३ के धन संकेंद्रण के संदर्भ में हुई है।
भारत में धन असमानता और आय 1922 – 2023 अरबपतियों के राज का उदय नामक शीर्षक से किए गए इस अध्ययन के लेखक व अर्थशास्त्री थॉमस पिकेट्टी ,नितिन कुमार भारती और अनमोल सोमांची है।
इसमें कहा गया है कि टॉप 1% की आई और संपत्ति का हिस्सा अपने उत्तम ऐतिहासिक स्तर पर था।
भारत की आय का असमानता का विवरण
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत की टॉप 1 % आबादी के पास 2022-23 में देश की कुल आय का 22.6% और संपत्ति का 40.1 % प्रतिशत हिस्सा होगा ।
टॉप 1 %औसतन 5.3 मिलियन रुपये कमाते हैं, औसत भारतीयों से 23 गुना (0.23 मिलियन रुपये), निचले 50% औसत आय और मध्य 40% 71,000 रुपये (राष्ट्रीय औसत का 0.3 गुना) और 65000 रुपये (राष्ट्रीय औसत का 0.7 गुना) इत्यादि।
लेखकों ने कहा कि भारत में उपनिवेशीवादी ताकतों वाले ब्रिटिश राज के मुकाबले आधुनिक पूंजीपति वर्ग के नेतृत्व में “अरबपतियो का राज ” अधिक असमान है।
लेखकों ने कहा, “इस संबंध में उपनिवेशवाद के बाद के देशों के बीच एक रोल मॉडल होने के बाद, हाल के वर्षों में भारत में विभिन्न प्रमुख संस्थानों की अखंडता से समझौता किया गया प्रतीत होता है।” “इससे भारत के धनतंत्र की ओर खिसकने की संभावना और भी अधिक वास्तविक हो जाती है।”
2014 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद भारत में पिछले 10 साल में बड़े राजनैतिक और आर्थिक विकास हुए है ,अध्ययन में यह भी बताया गया है।
“जबकि भाजपा विकास और आर्थिक सुधारों के जनादेश पर सत्ता में आई थी, कई पर्यवेक्षकों का मानना है कि अपने दो कार्यकालों में, इसने निर्णय लेने की शक्ति के केंद्रीकरण के साथ-साथ बड़े व्यवसाय और सरकार के बीच बढ़ती सांठगांठ के साथ एक सत्तावादी सरकार का नेतृत्व किया है। ,” यह भी कहा गया है अध्ययन में।
1 अरब डॉलर (लगभग 100 करोड़ रुपये) से अधिक की संपत्ति वाले भारतीयों की संख्या 1991 में 1 से बढ़कर 2022 में 162 हो गई है। फोर्ब्स अरबपति रैंकिंग के आंकड़ों का हवाला देते हुए अध्ययन में ऐसा भी कहा गया है।
अध्ययन में कहा गया है कि भारत में “आय और धन दोनों को ध्यान में रखते हुए कर कोड का पुनर्गठन” आवश्यक था। लेखकों ने कहा, “इस अवधि के दौरान, भारत की शुद्ध राष्ट्रीय आय के हिस्से के रूप में इन व्यक्तियों की कुल शुद्ध संपत्ति 1991 में 1% से बढ़कर 2022 में 25% हो गई।”
2022-23 में, अध्ययन के अनुसार, 167 सबसे धनी परिवारों की शुद्ध संपत्ति पर 2% का ‘सुपर टैक्स’ लागू किया जाएगा, जिससे राष्ट्रीय आय का 0.5% प्राप्त किया जा सकेगा, और इसे सुविधाजनक निवेश के लिए मूल्यवान वित्तीय स्थानों पर लगाया जाएगा।
वैश्वीकरण से लाभ उठाने के लिए, अध्ययन ने प्रकाश डालते हुए कहा है कि “औसत भारतीय को सक्षम बनाने के लिए, न कि केवल कुलीन वर्ग को” स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण में सार्वजनिक निवेश की आवश्यकता है। इसके साथ ही, अध्ययन ने अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करने के लिए राष्ट्रीय आय खातों, धन समुच्चय, कर तालिकाओं, समृद्ध सूचियों और आय, उपभोग और धन पर सर्वेक्षणों को एक सुसंगत ढांचे में संयोजित किया।
अध्ययन में भी यह बताया गया है कि भारत में आर्थिक डेटा की गुणवत्ता “काफी खराब है और हाल ही में इसमें गिरावट देखी गई है”। लेखकों ने कहा: “हम असमानता के अध्ययन को बढ़ाने और साक्ष्य-आधारित सार्वजनिक बहस को सक्षम करने के लिए आधिकारिक डेटा तक बेहतर पहुंच और अधिक पारदर्शिता का आह्वान करते हैं।”